वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
जैसा कोई छोड़ कर गया था
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ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं
उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
इक अश्क बहा होगा
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
कोई ऐसा तो तिरे ब'अद नहीं रहना था
मैं उस की आँखों के बारे में कुछ नहीं कहता
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं
इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता