उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
आग का मस तबाह-कुन राग का रस तबाह-कुन
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ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं
अब यहाँ कौन निकालेगा भला दूध की नहर
मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
मैं उस की आँखों के बारे में कुछ नहीं कहता
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
बाग़-ए-हवस में कुछ नहीं दिल है तो ख़ुशनुमा है दिल
कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं
किसी बुज़ुर्ग के बोसे की इक निशानी है