ताबीर बताई जा चुकी है
अब आँख को ख़्वाब देखना है
Mohsin Naqvi
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किसी बुज़ुर्ग के बोसे की इक निशानी है
ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
मैं उस की आँखों के बारे में कुछ नहीं कहता
मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझे
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
हमारी उम्र से बढ़ कर ये बोझ डाला गया
आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'
बाग़-ए-हवस में कुछ नहीं दिल है तो ख़ुशनुमा है दिल
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं