सड़क पे बैठ गए देखते हुए दुनिया
और ऐसे तर्क हुई एक ख़ुद-कुशी हम से
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(968) Peoples Rate This
सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता
लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हा
इक अश्क बहा होगा
क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं
फिर कोई दूर हुआ जाता है
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं