हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
ख़ुश-दिली ऐसी भी होती है भला
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कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
बेबसी ऐसी भी होती है भला
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझे
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं
आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'