हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
तेरे दरवाज़े बहकते हुए आते हैं हम
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मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
बेबसी ऐसी भी होती है भला
इक रात मैं सो नहीं सका था
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं
सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें
ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है