कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
मैं ढूँढता हूँ कि मैं कहीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
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हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
कोई ऐसा तो तिरे ब'अद नहीं रहना था
क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं
मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझे
इक रात मैं सो नहीं सका था
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
हमारी उम्र से बढ़ कर ये बोझ डाला गया
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं