हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
और पुकारा तो पुकारा भी सदाओं के बग़ैर
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ताबीर बताई जा चुकी है
इक अश्क बहा होगा
आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
बेबसी ऐसी भी होती है भला
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं