किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
'अता' इसी लिए सोते में होंट हिलते हैं
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हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं
कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
ताबीर बताई जा चुकी है
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
बेबसी ऐसी भी होती है भला
दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है
ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
इक रात मैं सो नहीं सका था