ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
दर-अस्ल ग़म का लिबादा बहुत ज़रूरी था
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कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं
हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हा
ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं
हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
इक अश्क बहा होगा