हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
ब-वक़्त-ए-गिर्या हम ऐसे थे, सारे जैसे हैं
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
इक रात मैं सो नहीं सका था
सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें
लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हा
बाग़-ए-हवस में कुछ नहीं दिल है तो ख़ुशनुमा है दिल
ऐ मियाँ कौन ये कहता है मोहब्बत की है
क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता
मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की