ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
यानी भूले भी नहीं तुम को पुकारा भी नहीं
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मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता
किसी बुज़ुर्ग के बोसे की इक निशानी है
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
हमारी उम्र से बढ़ कर ये बोझ डाला गया
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
इक रात मैं सो नहीं सका था
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें