मैं उस की आँखों के बारे में कुछ नहीं कहता
उफ़ुक़ से ता-बा-उफ़ुक़ इक जहाँ समझ लीजे
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सड़क पे बैठ गए देखते हुए दुनिया
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझे
मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की
हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं
हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
किसी बुज़ुर्ग के बोसे की इक निशानी है
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए
इक रात मैं सो नहीं सका था