अब यहाँ कौन निकालेगा भला दूध की नहर
इश्क़ करता है तू जैसा भी है अच्छा है मियाँ
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बाग़-ए-हवस में कुछ नहीं दिल है तो ख़ुशनुमा है दिल
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हा
आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'
इक रात मैं सो नहीं सका था
दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है
हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
किसी बुज़ुर्ग के बोसे की इक निशानी है