शोर Poetry (page 19)

थीं इक सुकूत से ज़ाहिर मोहब्बतें अपनी

एजाज़ उबैद

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

एजाज़ गुल

दुश्वार है अब रास्ता आसान से आगे

एजाज़ गुल

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

एजाज़ गुल

अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का

एजाज़ गुल

कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे

एहतिशाम हुसैन

कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था

एहसान दानिश

अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं

एहसान दानिश

ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है

दिवाकर राही

कराची की बस

दिलावर फ़िगार

क्रिकेट और मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

रात

दाऊद ग़ाज़ी

काश

दर्शिका वसानी

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

उस से क्या ख़ाक हम-नशीं बनती

दाग़ देहलवी

इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा

दाग़ देहलवी

ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया

दाग़ देहलवी

कभी हवा ने कभी उड़ते पत्थरों ने किया

चंद्र प्रकाश शाद

जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो

बिमल कृष्ण अश्क

रिस रहा है मुद्दत से कोई पहला ग़म मुझ में

बिलाल अहमद

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

भवेश दिलशाद

दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा

भारतेंदु हरिश्चंद्र

उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं

बहज़ाद लखनवी

ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है

बेदम शाह वारसी

हिकमत का बुत-ख़ाना

बेबाक भोजपुरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

मैं तिरे डर से रो नहीं सकता

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

हँसो आज इतना कि इस शोर में

बशीर बद्र

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

बशीर बद्र

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