सूरज Poetry (page 25)

सोए हुए जज़्बों को जगा कर फिर वो शाम न आई

बशीर मुंज़िर

इन चटख़्ते पत्थरों पर पाँव धरना ध्यान से

बशीर अहमद बशीर

अज़ल-ता-अबद

बशर नवाज़

हर नई रुत में नया होता है मंज़र मेरा

बशर नवाज़

खेत से बच कर गुज़रे बस्ती को वीरानी दे

बाक़र नक़वी

दीमक

बाक़र मेहदी

कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना

बख़्श लाइलपूरी

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

ज़फ़र

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

भागते सूरज को पीछे छोड़ कर जाएँगे हम

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

किस ने कहा है दीवारों पर साया करता है सूरज

अज़रक़ अदीम

कुछ नहीं होता शब भर सोचों का सरमाया होता है

अज़रक़ अदीम

ग़ुबार-ए-जाँ पस-ए-दीवार-ओ-दर समेटा है

अज़रा वहीद

उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया

अज़रा परवीन

बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा

अज़रा परवीन

सुब्ह के दो मंज़र

अज़रा नक़वी

ख़्वाब-जंगल

अज़रा नक़वी

अगर साए से जल जाने का इतना ख़ौफ़ था तो फिर

अज़्म शाकरी

अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते

अज़्म शाकरी

तेरी यादें हैं जिन्हें दिल में बसा रक्खा है

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

सिफ़र

अज़ीज़ तमन्नाई

मुराजअत

अज़ीज़ तमन्नाई

रफ़्तगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

एक मंज़र एक आलम

अज़ीज़ क़ैसी

बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना

अज़ीज़ क़ैसी

हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है

अज़ीज़ क़ैसी

आह-ए-बे-असर निकली नाला ना-रसा निकला

अज़ीज़ क़ैसी

ख़याल-ओ-ख़्वाब का सारा धुआँ उतर चुका है

अज़ीज़ नबील

ख़ाक चेहरे पे मल रहा हूँ मैं

अज़ीज़ नबील

अगरचे ज़ेहन के कश्कोल से छलक रहे थे

अज़ीज़ नबील

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