सूरज Poetry (page 26)

लज़्ज़त-ए-ग़म

अज़ीज़ लखनवी

ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

मिरे मिज़ाज को सूरज से जोड़ता क्यूँ है

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

कौन वाँ जुब्बा-ओ-दस्तार में आ सकता है

अज़ीम हैदर सय्यद

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

कोई ऐसी बात है जिस के डर से बाहर रहते हैं

अज़हर नक़वी

दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है

अज़हर नक़वी

ब-वक़्त-ए-शाम समुंदर में गिर गया सूरज

अज़हर नैयर

हमारे चेहरे पे रंज-ओ-मलाल ऐसा था

अज़हर नैयर

तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं

अज़हर इनायती

रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी

अज़हर इनायती

ज़िंदगी कैसे लगी दीवार से

अज़हर अब्बास

आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ

आज़ाद गुलाटी

रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया

आज़ाद गुलाटी

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज

आज़ाद गुलाटी

शफ़क़ हूँ सूरज हूँ रौशनी हूँ

अय्यूब साबिर

मता-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र रहा हूँ

अय्यूब साबिर

मोहब्बत का एक साल

अय्यूब ख़ावर

उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की

औरंगज़ेब

आइने से गुज़रने वाला था

औरंगज़ेब

मैं इंसान-ए-नौअ' हूँ मैं ईसा-नफ़स हूँ

आतिफ़ ख़ान

अपनी बेटी के नाम

अतीया दाऊद

शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज

अतीक़ अंज़र

कहीं बुझती है दिल की प्यास इक दो घूँट से 'अनज़र'

अतीक़ अंज़र

सुलगती रेत की क़िस्मत में दरिया लिख दिया जाए

अतीक़ अंज़र

फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे

अतीक़ अंज़र

जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है

अतीक़ अंज़र

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