सूरज Poetry (page 27)

चंद लम्हों को सही था साथ में रहना बहुत

अतीक़ इलाहाबादी

यक लम्हा सही उम्र का अरमान ही रह जाए

अता शाद

सर पे सूरज हो मगर साया न हो ऐसा न था

अता आबिदी

आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी

असरार ज़ैदी

चमचे की दुआ

असरार जामई

ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह

असरा रिज़वी

तेरा सूरज आएगा

असलम राशिद

नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं

असलम महमूद

ज़ख़्म सहे मज़दूरी की

असलम कोलसरी

जब मैं उस के गाँव से बाहर निकला था

असलम कोलसरी

ज़ीस्त की धूप से यूँ बच के निकलता क्यूँ है

असलम हबीब

कट गईं सारी पतंगें डोर से

असलम हबीब

दोस्ती को आम करना चाहता है

असलम हबीब

ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा

असलम फ़र्रुख़ी

मैं सोचता हूँ कहीं तू ख़फ़ा न हो जाए

असलम फ़र्रुख़ी

वो शब-ए-ग़म जो कम अँधेरी थी

असलम इमादी

ख़ून उतर आया दिल के छालों में

असलम बदर

ज़हर

असलम आज़ाद

उड़ते लम्हों के भँवर में कोई फँसता ही नहीं

असलम आज़ाद

ज़मीं की रात

आसिफ़ रज़ा

थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था

अशरफ़ शाद

दर्द लेंगे न हम दवा लेंगे

अशरफ़ नक़वी

शम्-ए-इख़्लास-ओ-यक़ीं दिल में जला कर चलिए

अशोक साहनी

मंज़िल-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का रास्ता अपनाइए

अशोक साहनी

रौशनाई

अशोक लाल

परिक्रमा तवाफ़

अशोक लाल

बुनियादें

अशोक लाल

वो मेरा है तो कभी भी न आज़माऊँ उसे

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

हीला है हवाला है

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी

अशफ़ाक़ अंजुम

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