सूरज Poetry (page 23)

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

नद्दी नद्दी रन पड़ते हैं जब से नाव उतारी है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

आँगन आँगन ख़ाना-ख़राबी हँसती है मे'मारों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले 'एजाज़'

एजाज़ वारसी

जहाँ पे डूब गया मेरी आस का सूरज

एजाज़ रहमानी

हँसी लबों पे सजाए उदास रहता है

एजाज़ रहमानी

हम ने आँख से देखा कितने सूरज निकले डूब गए

एजाज़ उबैद

ऐसे ही दिन थे कुछ ऐसी शाम थी

एजाज़ उबैद

उठा रखी है किसी ने कमान सूरज की

एजाज़ गुल

गली से अपनी उठाता है वो बहाने से

एजाज़ गुल

दुश्वार है अब रास्ता आसान से आगे

एजाज़ गुल

मैं

एजाज़ फ़ारूक़ी

हर्फ़

एजाज़ फ़ारूक़ी

अपना अपना रंग

एजाज़ फ़ारूक़ी

ख़ुद को जब लग गई नज़र अपनी

एजाज़ तालिब

शुऊर-ए-नौ-उम्र हूँ न मुझ को मता-ए-रंज-ओ-मलाल देना

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

बीमारी की ख़बर

एहतिशाम हुसैन

ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन

एहतराम इस्लाम

ग़ैज़ का सूरज था सर पर सच को सच कहता तो कौन

एहतराम इस्लाम

बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई

एहतराम इस्लाम

यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था

एहसान दानिश

वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए

एहसान दानिश

कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं

एहसान दानिश

इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया

एहसान दानिश

अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं

एहसान दानिश

रवानी ग़म की जिस में थी वो जौहर दे दिया मैं ने

दिलदार हाश्मी

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था

दिलावर अली आज़र

दरून-ए-ख़्वाब नया इक जहाँ निकलता है

दिलावर अली आज़र

आग के फूल पे शबनम के निशाँ ढूँडोगे

दीपक क़मर

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