जहाँ पे डूब गया मेरी आस का सूरज
उसी जगह वो सितारा-शनास रहता है
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मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से
वो एक पल की रिफ़ाक़त भी क्या रिफ़ाक़त थी
तालाब तो बरसात में हो जाते हैं कम-ज़र्फ़
रंग मौसम के साथ लाए हैं
उसे ये हक़ है कि वो मुझ से इख़्तिलाफ़ करे
नक़्श-बर-आब हो गया हूँ मैं
ख़ुश्क दरिया पड़ा है ख़्वाहिश का
हँसी लबों पे सजाए उदास रहता है
ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग
फ़ितरत के तक़ाज़े कभी बदले नहीं जाते
हवा के वास्ते इक काम छोड़ आया हूँ
अभी से पाँव के छाले न देखो