अभी से पाँव के छाले न देखो
अभी यारो सफ़र की इब्तिदा है
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जहाँ पे डूब गया मेरी आस का सूरज
ख़ुश्क दरिया पड़ा है ख़्वाहिश का
रंग मौसम के साथ लाए हैं
मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से
गुज़र रहा हूँ मैं सौदा-गरों की बस्ती से
हवा के वास्ते इक काम छोड़ आया हूँ
साए में आबलों की जलन और बढ़ गई
फ़ितरत के तक़ाज़े कभी बदले नहीं जाते
तालाब तो बरसात में हो जाते हैं कम-ज़र्फ़
कितने बा-होश हो गए हम लोग
ज़ालिम से मुस्तफ़ा का अमल चाहते हैं लोग