संग Poetry (page 5)

वो जो मुब्तला है मोहब्बतों के अज़ाब में

सय्यद मुबारक शाह

जैसे किसी को ख़्वाब में मैं ढूँढता रहा

सय्यद मुबारक शाह

एक मुजस्समे की ज़ियारत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

सग-ए-जमाल हूँ गर्दन से बाँध कर ले जा

सय्यद काशिफ़ रज़ा

आँखों को चमक चेहरे को इक आब तो दीजे

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

तमाशा-गाह-ए-आलम पर्दा-दार रू-ए-ज़ेबा है

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो

सय्यद अहमद शमीम

वो बज़्म-ए-ग़ैर में बा-सद-वक़ार बैठे हैं

सय्यद अाग़ा अली महर

नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर

सय्यद अाग़ा अली महर

हर लम्हा ज़िंदगी के पसीने से तंग हूँ

सूर्यभानु गुप्त

और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात

सुरूर बाराबंकवी

अपनी अना के गुम्बद-ए-बे-दर में बंद है

सूरज तनवीर

लहू-रंग सय्याल रौशन भँवर

सुलतान सुबहानी

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

सुलतान रशक

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

नहीं इस दश्त में कोई ख़िज़र है

सुलैमान अहमद मानी

फ़क़ीह-ए-शहर से रिश्ता बनाए रहता हूँ

सुहैल अहमद ज़ैदी

दीद का इसरार मूसा लन-तरानी कोह-ए-तूर

सुग़रा आलम

ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं

सुदर्शन फ़ाकिर

हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

अच्छा क़िसास लेना फिर आह-ए-आतिशीं से

सिराज लखनवी

ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी

सिराज औरंगाबादी

दो-रंगी ख़ूब नहीं यक-रंग हो जा

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

सिराज औरंगाबादी

अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़

सिराज औरंगाबादी

अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते

सिराज औरंगाबादी

तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे

सिरज़ अालम ज़ख़मी

प्यासा जो मेरे ख़ूँ का हुआ था सो ख़्वाब था

सिद्दीक़ मुजीबी

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