ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम'अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(508) Peoples Rate This
देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़
मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल
वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस
क्या होएगा सुनोगे अगर कान धर के तुम
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में
आ शिताबी सीं वगर्ना मज्लिस-ए-उश्शाक़ में
रोज़ा-दारान-ए-जुदाई कूँ ख़म-ए-अबरू-ए-यार
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक