अलगाव Poetry (page 4)

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता

वसीम बरेलवी

हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए

वसीम बरेलवी

पेश वो हर पल है साहब

वक़ार सहर

नक़ीब-ए-बख़्त सारे सो चुके हैं

वक़ार सहर

इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की

वामिक़ जौनपुरी

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

वामिक़ जौनपुरी

बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें

विलास पंडित मुसाफ़िर

इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा

विलास पंडित मुसाफ़िर

यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को

विकास शर्मा राज़

घर में वही पीली तन्हाई रहती है

विकास शर्मा राज़

वो निहत्ता नहीं अकेला है

विकास शर्मा राज़

एक तस्वीर जो तश्कील नहीं हो पाई

वसाफ़ बासित

बहुत टूटा हूँ लेकिन हौसला ज़िंदा बहुत कुछ है

वली मदनी

अक्सर तन्हाई से मिल कर रोए हैं

उषा भदोरिया

आइने से बात करना इतना आसाँ भी नहीं

उषा भदोरिया

एक दो अश्क बहाती है चली जाती है

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ

उर्मिलामाधव

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

मिरी सच्चाई हर सूरत तिरी मुट्ठी से निकलेगी

ताैफ़ीक़ साग़र

राज़ का बज़्म में चर्चा कभी होने न दिया

तसनीम आबिदी

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