अलगाव Poetry (page 5)

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

नमी आँखों की बादा हो गई है

तारिक़ राशीद दरवेश

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

ख़ुश्क आँखों से कहाँ तय ये मसाफ़त होगी

तारिक़ क़मर

कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग

तारिक़ क़मर

घर में बैठूँ तो शनासाई बुरा मानती है

तारिक़ मतीन

तन्हाई के फ़न में कामयाब

तनवीर अंजुम

राएगाँ सुब्ह की चिता पर

तनवीर अंजुम

दर्द की लय को बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

तनवीर अहमद अल्वी

फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है

तालीफ़ हैदर

शहर के दीवार-ओ-दर पर रुत की ज़र्दी छाई थी

ताज सईद

पहाड़ों को बिछा देते कहीं खाई नहीं मिलती

तफ़ज़ील अहमद

इक उम्र हुई और मैं अपने से जुदा हूँ

ताबिश सिद्दीक़ी

दश्त-ए-तन्हाई बादल हवा और मैं

ताबिश मेहदी

मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई

नहीं कोई दोस्त अपना यार अपना मेहरबाँ अपना

ताबाँ अब्दुल हई

यूँ तो इख़्लास में इस के कोई धोका भी नहीं

सय्यदा शान-ए-मेराज

आ गया ध्यान में मज़मूँ तिरी यकताई का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

अपने ख़्वाबों के पास रहने दे

सय्यद सग़ीर सफ़ी

हम से पहले तो कोई यूँ न फिरा आवारा

सय्यद मुनीर

बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

ख़ला में बंदर

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता

सय्यद अमीन अशरफ़

तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो

सय्यद अहमद शमीम

ये किताबों सी जो हथेली है

स्वप्निल तिवारी

हवा बातों की जो चलने लगी है

स्वप्निल तिवारी

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

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