समय Poetry (page 35)

मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है

इरम ज़ेहरा

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में

इक़बाल सुहैल

न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को

इक़बाल सुहैल

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ

इक़बाल साजिद

हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे

इक़बाल साजिद

साल नौ के लिए एक नज़्म

इक़बाल नाज़िर

नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे

इक़बाल मिनहास

शहपारा-ए-अदब हो अगर वारदात-ए-दिल

इक़बाल माहिर

जुनूँ में हम रह-ए-ख़ौफ़-ओ-ख़तर से गुज़रे हैं

इक़बाल माहिर

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

मैं दर पे तिरे दर-ब-दरी से निकल आया

इक़बाल कौसर

लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं

इक़बाल कैफ़ी

आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

इक़बाल हैदर

बुझ गई दिल की किरन आईना-ए-जाँ टूटा

इक़बाल हैदर

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

इक़बाल अज़ीम

कोई अच्छा लगे कितना ही भरोसा न करो

इक़बाल अासिफ़

न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत

इक़बाल अशहर

ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी

इक़बाल अशहर

बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का

इक़बाल अशहर

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद

लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं

इंशा अल्लाह ख़ान

कुछ इशारा जो किया हम ने मुलाक़ात के वक़्त

इंशा अल्लाह ख़ान

ये नहीं बर्क़ इक फ़रंगी है

इंशा अल्लाह ख़ान

याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

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