समय Poetry (page 33)

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को

रशीद लखनवी

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

किसे है लौह-ए-वक़्त पर दवाम सोचते रहे

रशीद कामिल

राह में क़दमों से जो लिपटी सफ़र की धूल थी

रशीद अफ़रोज़

तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ

रसा चुग़ताई

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

ऐ ख़ुदा मैं सुन रहा हूँ आहटें उस वक़्त की

राणा गन्नौरी

नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं

रम्ज़ी असीम

इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे

रम्ज़ी असीम

तुम पसीना मत कहो है जाँ-फ़िशानी का लिबास

रम्ज़ अज़ीमाबादी

तुम्हारा क़ुर्ब वजह-ए-इज़्तिराब-ए-दिल न बन जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है

रमेश कँवल

ग़म छुपाने में वक़्त लगता है

रमेश कँवल

ज़िंदगी कशमकश-ए-वक़्त में गुज़री अपनी

राम रियाज़

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया

राम रियाज़

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

राम रियाज़

गुज़िश्ता अहल-ए-सफ़र को जहाँ सुकून मिला

राम रियाज़

ये टूटी कश्तियाँ और बहर-ए-ग़म के तेज़ धारे हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

राम कृष्ण मुज़्तर

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

राम कृष्ण मुज़्तर

ऐ ख़ुदा तू ही मुझे चाहने वाला देना

राम दास

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हर जाद-ए-शहर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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