समय Poetry (page 75)

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

आदिल मंसूरी

ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है

आदिल हयात

अर्सा-ए-माह-ओ-साल से गुज़रे

आदिल फ़रीदी

तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए

अदीम हाशमी

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

अदीम हाशमी

ग़म है वहीं प ग़म का सहारा गुज़र गया

अदीम हाशमी

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

अदीम हाशमी

दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए

अदीम हाशमी

बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई

अदीम हाशमी

आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया

अदीम हाशमी

प्यार करते रहो

अदील ज़ैदी

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अदा जाफ़री

घर का रस्ता भी मिला था शायद

अदा जाफ़री

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

काम हर ज़ख़्म ने मरहम का किया हो जैसे

अबु मोहम्मद सहर

चाँद का रक़्स सितारों का फ़ुसूँ माँगती है

अबु मोहम्मद सहर

वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ

आबरू शाह मुबारक

उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा

आबरू शाह मुबारक

उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया

आबरू शाह मुबारक

डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ

आबरू शाह मुबारक

या सजन तर्क-ए-मुलाक़ात करो

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

आबरू शाह मुबारक

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