याद Poetry (page 49)

खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अतन

हसरत मोहानी

हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की

हसरत मोहानी

ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़

हसरत मोहानी

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह

हसरत मोहानी

ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र

हसरत मोहानी

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हसरत मोहानी

क्या वो अब नादिम हैं अपने जौर की रूदाद से

हसरत मोहानी

हुस्न-ए-बे-मेहर को परवा-ए-तमन्ना क्या हो

हसरत मोहानी

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

हसरत मोहानी

देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं

हसरत मोहानी

बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की

हसरत मोहानी

और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है

हसरत मोहानी

और भी हो गए बेगाना वो ग़फ़लत कर के

हसरत मोहानी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

उस ज़ुल्फ़ से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

हसरत अज़ीमाबादी

करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे

हसरत अज़ीमाबादी

इन दोनों घर का ख़ाना-ख़ुदा कौन ग़ैर है

हसरत अज़ीमाबादी

हम आप को तो इश्क़ में बर्बाद करेंगे

हसरत अज़ीमाबादी

हर तरफ़ है उस से मेरे दिल के लग जाने में धूम

हसरत अज़ीमाबादी

है याद तुझ से मेरा वो शर्ह-ए-हाल देना

हसरत अज़ीमाबादी

देखें तुझे न आवेंगे हम

हसरत अज़ीमाबादी

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