याद Poetry (page 57)

ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इश्क़ की दस्तरस में कुछ भी नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

तुझे मैं भूल जाना चाहता हूँ

ग़यास अंजुम

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'

ग़ालिब

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

ग़ालिब

मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'

ग़ालिब

कोई वीरानी सी वीरानी है

ग़ालिब

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

ग़ालिब

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है

ग़ालिब

दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं

ग़ालिब

दम लिया था न क़यामत ने हनूज़

ग़ालिब

आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद

ग़ालिब

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'

ग़ालिब

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

ग़ालिब

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो

ग़ालिब

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