यार Poetry (page 30)

चाहे सहरा में चाहे घर रहना

इबरत बहराईची

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो

इब्राहीम अश्क

क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता

इब्न-ए-रज़ा

कर बुरा तो भला नहीं होता

इब्न-ए-मुफ़्ती

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर

हुसैन ताज रिज़वी

ख़यालों ख़यालों में किस पार उतरे

हुसैन आबिद

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था

हिलाल फ़रीद

मुमकिन ही नहीं कि किनारा भी करेगा

हिलाल फ़रीद

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार में

हातिम अली मेहर

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

रंग-ए-सोहबत बदलते जाते हैं

हातिम अली मेहर

मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा

हातिम अली मेहर

कोई ले कर ख़बर नहीं आता

हातिम अली मेहर

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