घाव Poetry (page 19)

शामिल तू मिरे जिस्म मैं साँसों की तरह है

रईस सिद्दीक़ी

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म

रईस अमरोहवी

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी

रईस अमरोहवी

ढल गई हस्ती-ए-दिल यूँ तिरी रानाई में

रईस अमरोहवी

वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है

राहुल झा

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

तन्हाई

राही मासूम रज़ा

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है

इरफ़ान सत्तार

इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा

इरफ़ान सत्तार

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की

इक़बाल सुहैल

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

इक़बाल कौसर

मिरी नज़र से जो नज़रें बचाए बैठे हैं

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं

इक़बाल अज़ीम

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं

इक़बाल अज़ीम

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद

याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है

इंशा अल्लाह ख़ान

क्या मिला हम को तेरी यारी में

इंशा अल्लाह ख़ान

उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी

इंजिला हमेश

दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

वो एक शख़्स कि बाइस मिरे ज़वाल का था

इनाम-उल-हक़ जावेद

वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे

इमरान-उल-हक़ चौहान

मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक

इमरान-उल-हक़ चौहान

मैं सारी उम्र अहद-ए-वफ़ा में लगा रहा

इमरान हुसैन आज़ाद

रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था

इमदाद निज़ामी

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से

इम्दाद इमाम असर

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