किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म
कौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में
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सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी
दुनिया को क्या ख़बर? मिरी दुनिया फिर आ गई
ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम
अहरमन है न ख़ुदा है मिरा दिल
पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है
कहीं से साज़-ए-शिकस्ता की फिर सदा आई
माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ
जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ
मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले
अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो
जो अपने क़ौल को क़ानून समझें