पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
अब ये शिकवा कि शराफ़त ने कहीं का न रखा
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माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ
ऐ दिल शरीक-ए-ताइफ़ा-ए-वज्द-ओ-हाल हो
मीज़ान हाथ में है ज़ियाँ की न सूद की
शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है
सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे
आदमी की तलाश में है ख़ुदा
सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ
जहाँ माबूद ठहराया गया हूँ
ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम