सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
सदियों से इंतिज़ार-ए-सहर कर रहे हैं हम
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(580) Peoples Rate This
कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए
ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है
कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
दुनिया को क्या ख़बर? मिरी दुनिया फिर आ गई
अब दिल की ये शक्ल हो गई है
अपने को तलाश कर रहा हूँ
बुलंद-ओ-पस्त में मंज़िल हमें कहीं न मिली
पहले भी ख़राब थी ये दुनिया
ऐ दिल शरीक-ए-ताइफ़ा-ए-वज्द-ओ-हाल हो
पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े