अब दिल की ये शक्ल हो गई है
जैसे कोई चीज़ खो गई है
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दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'
अपने को तलाश कर रहा हूँ
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
बुलंद-ओ-पस्त में मंज़िल हमें कहीं न मिली
दीदनी है बहार का मंज़र
मैं जो तन्हा रह-ए-तलब में चला
हम लोग हैं वाक़ई अजूबा
सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे
'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले
'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े