दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'
ये ज़मीं आसमाँ से आती है
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ये फ़क़त शोरिश-ए-हवा तो नहीं
अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो
शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है
पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
दुनिया को क्या ख़बर? मिरी दुनिया फिर आ गई
अपने को तलाश कर रहा हूँ
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म