अपने को तलाश कर रहा हूँ
अपनी ही तलब से डर रहा हूँ
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हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'
अब दिल की ये शक्ल हो गई है
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
दिल से या गुल्सिताँ से आती है
दुनिया को क्या ख़बर? मिरी दुनिया फिर आ गई
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ
शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है
दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
चंद बेनाम-ओ-निशाँ क़ब्रों का