हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'
ये किस की ज़ीस्त है जो बसर कर रहे हैं हम
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ढल गई हस्ती-ए-दिल यूँ तिरी रानाई में
सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए
दिल कई रोज़ से धड़कता है
जो अपने क़ौल को क़ानून समझें
ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में
तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू
शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है
सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी
हम लोग हैं वाक़ई अजूबा
बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है
कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम