जो अपने क़ौल को क़ानून समझें
वो क़ाएल हो नहीं सकते अबद तक
बहुत से लोग यारान-ए-वतन हैं
मुहक़क़िक़ हैं मगर हुक़्क़े की हद तक
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Friends Poetry
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'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो
ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है
पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए
हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'
अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो
सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर