आदमी की तलाश में है ख़ुदा
आदमी को ख़ुदा नहीं मिलता
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रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए
ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम
अहरमन है न ख़ुदा है मिरा दिल
किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म
शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है
सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए
हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी
कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो
दिल से या गुल्सिताँ से आती है
हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं
सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी