पहले भी ख़राब थी ये दुनिया
अब और ख़राब हो गई है
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तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू
हम लोग हैं वाक़ई अजूबा
हम अपने हाल-ए-परेशाँ पे बारहा रोए
रक़्साँ है मुंडेर पर कबूतर
ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम
'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो
अब दिल की ये शक्ल हो गई है
गर्द में अट रहे हैं एहसासात
अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो
टहनी पे ख़मोश इक परिंदा
जो अपने क़ौल को क़ानून समझें