घाव Poetry (page 20)

ज़बान-ए-हाल से हम शिकवा-ए-बेदाद करते हैं

इम्दाद इमाम असर

जो नर्म लहजे में बात करना सिखा गया है

इम्दाद हमदानी

मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

इमदाद अली बहर

बद-तालई का इलाज क्या हो

इमदाद अली बहर

मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का

इमाम बख़्श नासिख़

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

आसाँ नहीं है जादा-ए-हैरत उबूरना

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इल्तिजा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक था राजा छोटा सा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

घबरा गए हैं वक़्त की तन्हाइयों से हम

इफ़्फ़त ज़र्रीं

ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से

इब्न-ए-सफ़ी

बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म

इब्न-ए-सफ़ी

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

कल जो मैं ने झाँक के देखा उस की नीली आँखों में

हुसैन माजिद

धूल-भरी आँधी में सब को चेहरा रौशन रखना है

हुसैन माजिद

उलझनें इतनी थीं मंज़र और पस-मंज़र के बीच

हुसैन ताज रिज़वी

इस हाल में जीते हो तो मर क्यूँ नहीं जाते

हुसैन ताज रिज़वी

कभी वफ़ूर-ए-तमन्ना कभी मलामत ने

हुसैन आबिद

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

उस के सिवा क्या अपनी दौलत

हुरमतुल इकराम

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदार की बातें हैं

हिना हैदर

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