ज़ीस्त Poetry (page 18)
मुख़्तसर अपनी हदीस-ए-ज़ीस्त ये है इश्क़ में
आनंद नारायण मुल्ला
मोहिब्बान-ए-वतन का नारा
आनंद नारायण मुल्ला
सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
मिरी बातों पे दुनिया की हँसी कम होती जाती है
आनंद नारायण मुल्ला
मिरी बात का जो यक़ीं नहीं मुझे आज़मा के भी देख ले
आनंद नारायण मुल्ला
तुम अगर चाहो तो
अमजद नजमी
ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
ज़िंदगी बे-क़रार कौन करे
अमित अहद
ख़ुदा की कौन सी है राह बेहतर जानता है
अमित अहद
तअ'ल्लुक़ात के सारे दिए बुझे हुए थे
आमिर नज़र
कुछ सुलगते हुए ख़्वाबों की फ़रावानी है
आमिर नज़र
खुला है तेरे बदन का भी इस्तिआरा कुछ
आमिर नज़र
दरून-ए-जिस्म की दीवार से उभरती है
आमिर नज़र
ए'तिबार-ए-शौक़ इक धोका सही
आमिर मौसवी
दिन को कह दें रात हम समझे नहीं
आमिर मौसवी
मिला भी ज़ीस्त में क्या रन्ज-ए-रह-गुज़ार से कम
अंबरीन हसीब अंबर
जब से ज़िंदगी हुआ दिल गर्दिश-ए-तक़दीर का
अंबरीन हसीब अंबर
सुब्ह-ए-विसाल-ए-ज़ीस्त का नक़्शा बदल गया
अमानत लखनवी
लुत्फ़ अब ज़ीस्त का ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं
अमानत लखनवी
वो मसाफ़-ए-जीस्त में हर मोड़ पर तन्हा रहा
अलक़मा शिबली
खुला है ज़ीस्त का इक ख़ुशनुमा वरक़ फिर से
आलोक यादव
ये कौन तुम से अब कहे
अलमास शबी
वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ
अली सरदार जाफ़री
मेरी इम्लाक समझ बे-सर-ओ-सामानी को
अली मुज़म्मिल
ज़र्रा-ए-ना-तापीदा की ख़्वाहिश-ए-आफ़ताब क्या
अली जव्वाद ज़ैदी
बन कर लहू यक़ीन न आए तो देख लें
अलीम अफ़सर
हिसार-ए-मक़्तल-ए-जाँ में लहू लहू मैं था
आलमताब तिश्ना
अंधा सफ़र है ज़ीस्त किसे छोड़ दे कहाँ
अकरम नक़्क़ाश
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें
अकरम नक़्क़ाश
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