तिरे निशान को चिंता हवा में गलियों में
निकल गया हूँ बहुत दूर ऐसे रस्तों पर
जहाँ पे ख़ुद को भी चाहूँ तो ढूँड सकता नहीं
सफ़र हयात का लगता है राएगाँ ही गया
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मुक़फ़्फ़ल चुप
तख़्लीक़
कई लम्हे
जिस्म से आगे की मंज़िल
इम्कान
अंदेशा
पहचान
कैसी उफ़्ताद पड़ी
हम-ज़ाद
किस तरह रात की दहलीज़ कोई पार करे
राएगानी
ख़ामोशी का शोर