सिर्फ़ कह दूँ कि नाव डूब गई
या बताऊँ कि कैसे डूबी थी
तुम कहानी तो ख़ैर सुन लोगी
आप-बीती कहूँ कि जग-बीती
Rahat Indori
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बुझ गई शम-ए-हरम बाब-ए-कलीसा न खुला
''ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते''
माह-ओ-साल
चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
कोई रफ़ीक़ बहम ही न हो तो क्या कीजे
वक़्त के साथ लोग कहते थे
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
हुई ईजाद नई तर्ज़-ए-ख़ुशामद कि नहीं
यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
गिर्या तो अक्सर रहा पैहम रहा
मिरे ज़ख़्मी होंट
सहर जीतेगी या शाम-ए-ग़रीबाँ देखते रहना