बहुत बकने लगा है ये दिल-ए-हसरत-ज़दा अब तो
कहीं ऐसा न हो कुछ राज़ की बातें भी कह जाए
मगर इस मसअले का एक हल ये है
मिरे मुँह खोलते ही तुम
मुझे चुप-शाह के रोज़े की चुपके से क़सम दे कर
ज़बाँ का बुत
मिरे होंटों की मेहराबों में रख दो
और मुझे ख़ामोश कर दो
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(375) Peoples Rate This
वक़्त वक़्त की बात है
तजज़िया
मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते
सिलसिला-ए-ज़िन्दगी
आबला
ये बे-नवाई हमारी सौदा-ए-सर है घर में बसा दिया है
ख़्वाबों के रिश्ते
आइने से मुकर गया कोई
इंकिशाफ़
वही तअल्लुक़-ए-ख़ातिर जो बर्क़-ओ-बाद में है
हयात दी तो उसे ग़म का सिलसिला भी किया
अज़्म-ए-बुलंद जो दिल-ए-बेबाक में रहा