दर्पण Poetry (page 19)

चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना

फ़रहत एहसास

ग़म का बादल

फ़रीद इशरती

किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया

फ़राग़ रोहवी

कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे

फ़राग़ रोहवी

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा

फ़राग़ रोहवी

क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते

फ़ानी बदायुनी

क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए

फ़ानी बदायुनी

हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है

फ़ना निज़ामी कानपुरी

आईना

फख्र ज़मान

गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

शाएर लोग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग है दिल का मिरे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-महफ़िल ठहर जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज फिर आईना देखा है कई साल के बाद

फ़ैसल अजमी

उस ने देखा जो मुझे आलम-ए-हैरानी में

फ़ैसल अजमी

तेरी आँखें न रहीं आईना-ख़ाना मिरे दोस्त

फ़ैसल अजमी

शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है

फ़ैसल अजमी

सारबाँ

फ़हीम शनास काज़मी

क़िस्सा तमाम

फ़हीम शनास काज़मी

अली-बाबा कोई सिम-सिम

फ़हीम शनास काज़मी

आईना देखते हो

फ़हीम शनास काज़मी

उस ने पूछा भी मगर हाल छुपाए गए हम

फ़हीम शनास काज़मी

उस ने देखा था अजब एक तमाशा मुझ में

एजाज़ उबैद

ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के

एजाज़ गुल

फैला अजब ग़ुबार है आईना-गाह में

एजाज़ गुल

नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है

एजाज़ गुल

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