दर्पण Poetry (page 21)

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या

बेख़ुद देहलवी

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ

बेख़ुद देहलवी

अदू को देख के जब वो इधर को देखते हैं

बेख़ुद देहलवी

अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो

बेख़ुद देहलवी

न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़

बेदम शाह वारसी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है

बेबाक भोजपुरी

वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स

बयान मेरठी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले

बासित भोपाली

कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए

बशीर बद्र

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

दूर तक चारों तरफ़ मेरे सिवा कोई न था

बशीर अहमद बशीर

फ़ासला

बशर नवाज़

अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है

बशर नवाज़

वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही

बाक़ी सिद्दीक़ी

वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं

बाक़ी सिद्दीक़ी

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

देख आईना जो कहता है कि अल्लाह-रे मैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

क़ज़ा ने हाल-ए-गुल जब सफ़्हा-ए-तक़दीर पर लिक्खा

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!

बाक़र मेहदी

दिल से बे-सूद और जाँ से ख़राब

बकुल देव

ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई

ज़फ़र

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

ज़फ़र

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