दर्पण Poetry (page 20)

महमिल है मतलूब न लैला माँगता है

एजाज़ गुल

कभी क़तार से बाहर कभी क़तार के बीच

एजाज़ गुल

ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ

एहसान दरबंगावी

रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं

एहसान दानिश

ता-अबद हासिल-ए-अज़ल हूँ मैं

डॉ. पिन्हाँ

मिसाल-ए-आईना रहना कोई मज़ाक़ नहीं

डॉक्टर आज़म

चोर-साहिब से दरख़्वास्त

दिलावर फ़िगार

मैं सिर्फ़ वो नहीं जो नज़र आ गया तुझे

दिल अय्यूबी

अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं

दिल अय्यूबी

फिर वही शख़्स मिरे ख़्वाब में आया होगा

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

फ़रियाद सदा-ए-नफ़स आवाज़-ए-जरस है

दाऊद औरंगाबादी

आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब

दाऊद औरंगाबादी

पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में

दत्तात्रिया कैफ़ी

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने

दर्शन सिंह

तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ

दाग़ देहलवी

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया

दाग़ देहलवी

एक मरकज़ पे सिमट आई है सारी दुनिया

चरण सिंह बशर

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था

बिमल कृष्ण अश्क

चाँद को रेशमी बादल से उलझता देखूँ

बिमल कृष्ण अश्क

ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे

बिमल कृष्ण अश्क

दीवार-ओ-दर में सिमटा इक लम्स काँपता है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा

भारत भूषण पन्त

न देखना कभी आईना भूल कर देखो

बेख़ुद देहलवी

अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी

बेख़ुद देहलवी

वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए

बेख़ुद देहलवी

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